भोपाल। भले ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगभग एक माह बाद अपनी टीम गठित कर ली हो, लेकिन इस बार उनकी राह उतनी आसान नहीं है जितनी बतौर मुख्यमंत्री पिछले तीन कार्यकालों के तेरह सालों में रही है। अब तक बगैर रोक-टोक सरकार चलाने वाले चौहान के सामने शायद यह पहला मौका होगा जब वे टीम गठित करते वक्त पूरी तरह मन की नहीं कर पाए हैं। महज पांच मंत्रियों वाली पहली टीम क्षेत्रीय, जातीय, गुटीय संतुलन जैसे सियासी जुमलों की कसौटी पर तो खरी उतर रही है, लेकिन मुख्यमंत्री के भरोसे और सामने खड़ी पहाड़ जैसी चुनौतियों की कसौटी पर जरूर इसे कसा जाना शेष है।
विपरीत हालातों में कमल नाथ सरकार के पतन के बाद शिवराज सिंह चौहान ने 23 मार्च की रात को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। जिस समय उनकी शपथ हुई उस समय कोरोना महामारी की आहट राज्य में सुनाई पड़ने लग गई थी। अगले ही दिन से देशव्यापी लॉकडाउन शुरू हो गया और सब कुछ ठहर गया, सिवाय संक्रमण के। अगले कुछ दिनों तक राजनीतिक गलियारों में सन्नाटे जैसा माहौल रहा। लॉकडाउन के बीच मंत्रिमंडल का गठन संभव नहीं था, लिहाजा शिवराज अकेले ही किला लड़ाते नजर आए।
उठने लगी थी आवाजें
धीरे-धीरे पार्टी के भीतर और बाहर से मंत्रिमंडल गठन को लेकर आवाजें उठने लगी। अंदरखाने के सूत्रों की मानें तो खुद शिवराज चाहते थे कि जल्द से जल्द मंत्रिमडल बन जाएं ताकि वे कुछ जिम्मेदारियां साथियों में बांटकर कुछ हद तक तनाव मुक्त हो जाए। पर मामला इतना आसान नहीं था। फैसला अकेले शिवराज सिंह चौहान को लेना होता तो कभी का ले लिया जाता। इस बार राजनीतिक हालात कुछ और है, जिनसे मुख्यमंत्री के नाते शिवराज को आए दिन दो चार होना है। खैर, कांग्रेस से टूटकर भाजपा में आए खेमे को समायोजित करना इतना आसान काम नहीं था।